श्री मद्भागवत गीता अंतिम श्लोक 18:78

यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: |
तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम || 18:78||
 (निष्कर्ष पूर्णाहुति श्लोक)
- श्री मद्भागवत गीता

संजय: जहां श्री कृष्ण और कर्मयोगी अर्जुन होंगे वहीं आधारभूत आदर्श की स्थापना, नीति विजय और शिखर उत्सव मनाये जाएंगे।

धृतराष्ट्र: संजय बढ़ाकर वर्णन कर रहा है, जहां भीष्म पितामह, गूरू द्रोण और मेरे १०० वीर पुत्रों युक्त सेना होगी वहां बिना राजपाट वाले पाण्डवों और ख़ाली हाथ बिना नारायणी सेना वाले ग्वाले किसना की शर्मनाक हार निश्चित है। 

अर्जुन: जब आप स्वयं भगवान श्री कृष्ण साथ है वहां जीत और हार का क्या महत्व, मैं क्षत्रियत्व का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं और इस समय युद्ध भूमि में हूं और वीर कर्म ही मेरी प्रकृति है। मैं अपने कर्तव्य का पालन करुंगा।

वीर हनुमान: अभी तक मैं आपका स्वरूप जानता था पर अब समस्त विश्व जान जायेगा कि ईश्वर निराकार निर्गुण ब्रह्म को साकार सृष्टि रचियता क्यों कहा जाता है।

श्वेत अश्व: हे सव्यासांची, मानव प्रभावशाली इच्छाशक्ति  और कर्म शक्ति से अपने ज्ञान रुपी जीवन यज्ञ से मोक्षदायिनी वर पा सकता है, आपका धन्यवाद कि आपने भगवान श्रीकृष्ण और नारायणी सेना में भगवन् को अपनाया।

-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

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